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Showing posts from April, 2023

भैंस का दूध तामसिक होता है.... जबकि गाय का सात्विक।

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जय श्री राधेकृष्ण, जय गोविंदा हरे 🙏 गाय व भैंस के दूध में अंतर, जो बहुत कम लोग जानते हैं ! भैंस को गन्दगी पसन्द है, कीचड़ में लथपथ रहेगी,,  पर गाय अपने गोबर पर भी नहीं बैठेगी उसे स्वच्छता प्रिय है। भैंस को घर से 2 किमी दूर तालाब में छोड़कर आ जाओ वह घर नहीं आ सकती उसकी याददास्त जीरो है।  गाय को घर से 5 किमी दूर छोड़ दो, वह घर का रास्ता जानती है,आ जायेगी, गाय के दूध में स्मृति तेज है। दस भैंसों को बाँधकर 20 फुट दूर से उनके बच्चों को छोड़ दो, एक भी बच्चा अपनी माँ को नहीं पहचान सकता,  जबकि गौशालाओं में दिन भर गाय व बछड़े अलग-अलग शैड में रखते हैं, सायंकाल जब सबका माता से मिलन होता है तो सभी बच्चे (हजारों की स॔ख्या में) अपनी अपनी माँ को पहचान कर दूध पीते हैं, ये है गाय दूध की याददास्त। जब भैंस का दूध निकालते हैं तो भैंस सारा दूध दे देती है,  परन्तु  गाय थोड़ा-सा दूध ऊपर चढ़ा लेती है, और जब उसके बच्चे को छोड़ेंगे तो उस चढ़ाये दूध को उतार देती है।  ये गुण माँ के हैं जो भैंस मे नहीं हैं। गली में बच्चे खेल रहे हों और भैंस भागती आ जाये तो बच्चों पर पैर अव...

कम लागत और कम पूंजी से शुरू करें मधुमक्खी पालन, इस तरह शुरू करें ये व्यवसाय

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कम लागत और कम पूंजी से शुरू करें मधुमक्खी पालन, इस तरह शुरू करें ये व्यवसाय लेखक: कौशलेन्द्र प्रताप सिंह  मधुमक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो खेती किसानी से जुड़े लोग या फिर बेरोजगार लोग इस व्यवसाय को अपनाकर एक साल में लाखों की कमाई कर सकते है। इस व्यवसाय में कम लागत और कम पूंजी लगाकर ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। "शुरू में एक डिब्बे से इस व्यवसाय को शुरू किया जा सकता है। भारत शहद उत्पादन के मामले में अभी पांचवें स्थान पर है। किसानों की आय बढ़ाने करने के लिए और मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए देश के कई संस्थान इस व्यवसाय की ओर ध्यान दे रहे है। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए किसी मान्यता प्राप्त से संस्थान से प्रशिक्षण लें। मौन पालन के लिए एक समूह बनाना होता है जिससे पालन किया जाता है। तीन तरह की मधुमक्खी की जरुरत होती है। पहली रानी मधुमक्खी जो 24 घंटे में लगभग 800-1500 अंडे देती है। इसको मधुमक्खी को एक ही से शुरू किया जा सकता है। दूसरी वरकर(कमेरी) ये मधुमक्खी अंडे से निकले बच्चों को खाना खिलाती है। एक डब्बे में इनकी संख्या 25-30 हज़ार होनी चाहिए। तीसरी ड्रॉन(नर)इस ...

मिट्टी की जांच एवं इसका लाभ

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मिट्टी की जांच एवं इसका लाभ लेखक: कौशलेन्द्र प्रताप सिंह खेत में लगातार रासायनिक पदार्थों और रसायनों के प्रयोग के कारण खेत की मिट्टी की क्षमता कम हो जाती है। कई वर्षों के अनुभव के बाद भी किसानों के लिए मिट्टी की बहाना क्षमता का आकलन कठिन होता है। ऐसी स्थिति में अंतर्निहित धारणा पर प्रभाव पड़ता है। उच्च गुणवत्ता की कटौती और अधिक अनुमान प्राप्त करने के लिए मिट्टी में मौजूद तत्वों की जानकारी होना बहुत जरूरी है। सूक्ष्म परीक्षण यानी मिट्टी की जांच कर किसान इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी की जांच के फायदे , इसकी प्रक्रिया, जांच के लिए सावधानियों की जानकारी यहां से प्राप्त करें। मिट्टी की जांच क्यों जरूरी है? मिट्टी में कई पोषक तत्व होते हैं। सटीक को अपने जीवन चक्र में कई तत्वों की आवश्यकता होती है। मुख्य तत्व जैसे कार्बन, रिकॉर्डर, ऑक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोथाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम और सूक्ष्म तत्व जैसे जस्ता, मैग्नीज, ताब, लौह, बोरोन, मोलिब्डेनम और क्लोरीन की मात्रा से बहुत अच्छी तरह प्राप्त होती है। मिट्टी में इन तत्वों की कमी...

मिट्टी जांच के लिए नमूना लेने की विधि एवं सावधानियां

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मिट्टी जांच के लिए नमूना लेने की विधि एवं सावधानियां लेखक: कौशलेन्द्र प्रताप सिंह अगर आप मिट्टी जांच करवाना चाहते हैं तो इस प्रक्रिया के लिए नमूना लेने की विधि और नमूना लेने के समय बरती जाने वाली सावधानियों की जानकारी होना आपने लिए बहुत जरूरी है। नमूना लेते समय हमारी जरा सी गलती से जांच का परिणाम गलत हो सकता है। मिट्टी जांच के लिए नमूना लेने की विधि एवं सावधानियों की जानकारी यहां से प्राप्त करें। मिट्टी जांच के लिए नमूना लेने की विधि जिस खेत की मिट्टी की जांच करवानी है उस खेत में 8-10 जगह निशान लगा लें। निशान लगाए सभी जगहों से घास, कंकड़, पत्थर आदि हटा दें। सभी स्थानों में 15 सेंटीमीटर गहराई तक खोद कर मिट्टी निकालें। अब सभी गड्ढों से 2-3 सेंटीमीटर मिट्टी निकालें। सभी गड्ढों से निकाली गई मिट्टी को अच्छी तरह मिला दें। अब मिट्टी को चार भागों में बांट लें। आमने - सामने के दो भागों की मिट्टी को मिला दें और शेष मिट्टी फेंक दें। मिट्टी के करीब 500 ग्राम होने तक इस प्रक्रिया को दुहराएं। इस तरह से लिया गया नमूना पूरे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। इस नमूने के साथ अपना न...

छोटे और सीमांत किसानों की आय में बढ़ोतरी करने में कारगर मशरूम की खेती

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छोटे और सीमांत किसानों की आय में बढ़ोतरी करने में कारगर मशरूम की खेती  मशरूम की किस्में- जिनकी भारत में होती है सबसे अधिक खेती,  कम लागत और ज़्यादा मुनाफ़ा पिछले कुछ सालों में किसानों का रुझान पारंपरिक खेती के अलावा, मशरूम की खेती की तरफ़ बढ़ा है। मशरूम एक ऐसी फसल है, जिसकी खेती कम लागत में और कम जगह में की जा सकती है। पहले मशरूम की फसल को लेकर किसानों में जानकारी का अभाव था, लेकिन अब स्थितियां बदली हैं। देश के कई राज्यों के किसान मशरूम की खेती कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में व्यापारिक स्तर पर मशरूम की खेती होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि कम जगह, कम समय और कम लागत में तैयार होने वाला  मशरूम, उच्च मूल्य वाली कृषि फसल (High Value Agricultural Crops) है यानी ये महंगी बिकती है और मुनाफ़ा अच्छा होता है। ये छोटे और सीमांत किसानों की आय में बढ़ोतरी करने में कारगर साबित हो सकता  है। मशरूम की अलग-अलग किस्मों की खेती कर किसान अच्छी आमदनी कर रहे हैं। आज मशरूम की ऐसी ही 5 उन्न...