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बीज उत्पादन: बीज उत्पादन का एक ऐसा मॉडल कि खरीदारी की समस्या भी हुई हल, कृषि केंद्र ने की शुरुआत

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बीज उत्पादन: बीज उत्पादन का एक ऐसा मॉडल कि खरीदारी की समस्या भी हुई हल, कृषि केंद्र ने की शुरुआत ग्लोबल रिसर्च सेंटर सहभागी बीज उत्पादन से किसानों को हुआ फ़ायदा बीज उत्पादन (बीज उत्पादन):  जब किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीज मिलेंगे, तो फल का उत्पादन अधिक होगा और जब उत्पादन अधिक होगा तो स्थापित सी बात है कि उनके उद्यम। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चरल रिसर्च) जैसी संस्था समय-समय पर सब्जियों के बीज की उन्नत उन्नत विकसित करती रहती है। कई बार किसानों को पर्याप्त मात्रा में उन्नत बीज उपलब्ध नहीं हो पाता। किसानों की फसल को पूरा करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र (KVK-कृषि विज्ञान केंद्र) के लिए यह संभव नहीं है, ऐसे में कृषि विज्ञान ग्लोबल रिसर्च सेंटर नरसारा ने तुमकुर जिले के कई किसानों को साथ लेकर सहभागी बीज उत्पादन (बीज उत्पादन) की योजना बनाई है। ।। इससे किसानों को फ़ायदा हुआ। ग्लोबल रिसर्च सेंटर सहभागी बीज उत्पादन क्या है (सहभागी बीज उत्पादन) कर्नाटक के तुमकुर जिले के किसानों क...

कटहल अपने औषधीय गुणों की वजह से भारत में सबसे तेजी से लोकप्रिय हो रहा फल

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कटहल अपने औषधीय गुणों  की वजह से भारत में सबसे तेजी से लोकप्रिय हो रहा फल प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह  प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं सह निदेशक अनुसन्धान  डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा ,समस्तीपुर, बिहार  Send feedback sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in kunvarkps@gmail.com कटहल (आर्टोकार्पस हेटरोफिलस) एक उष्णकटिबंधीय फल है जो भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है। यह एक पेड़ पर उगने वाला सबसे बड़ा फल है और इसका एक विशिष्ट स्वाद और बनावट है। भारत में कटहल की खेती का एक लंबा इतिहास रहा है और यह देश भर के कई राज्यों में व्यापक रूप से उगाया जाता है। हमारे देश में इस समय लगभग 11प्रतिशत जनसंख्या डायबिटीक  एवं लगभग 15 प्रतिशत जनसंख्या प्री डायबिटीक है। इस माहौल में देखा गया की कटहल के अंदर डायबिटीक रोग को प्रबंधित करने की छमता  है। बहुत तेजी से लोग कटहल के प्रोडक्ट का उपयोग डायबिटीक प्रबंधन में कर रहे है।हम कह सकते है की आगामी वर्षों में कटहल की मांग कई गुणा बढ़ने वाली है।आगामी मानसून के मौसम में अवश्य कटहल...

इस साल से केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में एवोकैडो की खेती (Avocado Farming) एवं अनुसंधान शुरू किया जाएगा

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इस साल से केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में एवोकैडो की खेती (Avocado Farming) एवं अनुसंधान शुरू किया जाएगा QRT, CIAH,बीकानेर एवं आईसीएआर - एआईसीआरपी (शुष्क फल) के बतौर सदस्य मुझे हार्टिकल्चर रीसर्च स्टेशन, हीरेहल्ली,कर्नाटक जो IIHR, बैंगलोर का एक अनुसंधान केंद्र है वहा जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। भ्रमण के दौरान मुझे एवोकैडो फल (Avocado fruits) खाने को मिला ,फल का स्वाद  शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे लिए संभव नहीं है....इसे खाते समय लग रहा था की मैं दुध की मलाई से बने किसी उच्च स्तरीय मिठाई  को खा रहा हूं। इस वर्ष जुलाई अगस्त से अखिल भारतीय समन्वित फल परियोजना के अंतर्गत इसके कुछ पेड़ पूसा में लगा कर इसकी खेती की संभावना को परखने का प्रयास प्रस्तावित है। इसमें फल आने में 5 से 6 वर्ष लगते है उसके उपरांत ही बिहार की कृषि जलवायु में  इस फल की खेती से संबंधित पैकेज एंड प्रैक्टिसेज दे पाना संभव होगा। भ्रमण के दौरान हमने वहा के वैज्ञानिक से विस्तार से चर्चा की की क्या इसकी खेती बिहार की कृषि जलवायु में किया जा सकता है की नही। उनसे हुईं वार्ता के आधार पर एवोकैडो की खेत...

भारत में इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर - हरित भविष्य की ओर अग्रसर

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भारत में इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर - हरित भविष्य की ओर अग्रसर भारत में इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर -  पारंपरिक डीजल से चलने वाले ट्रैक्टरों के स्थायी विकल्प के रूप में इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर भारत में ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। डीजल ट्रैक्टरों के व्यापक उपयोग के कारण भारत में कृषि क्षेत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इलेक्ट्रिक ट्रैक्टरों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने, ईंधन की लागत को कम करने और कृषि पद्धतियों में समग्र दक्षता में सुधार करने की क्षमता है। इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर का उपयोग करने के कई फायदे हैं। सबसे पहले, वे शून्य उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं, जो वायु गुणवत्ता में सुधार करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है। दूसरा, वे आमतौर पर गैसोलीन से चलने वाले ट्रैक्टरों की तुलना में संचालित करने और बनाए रखने के लिए कम खर्चीले होते हैं। तीसरा, वे गैसोलीन से चलने वाले ट्रैक्टरों की तुलना में शांत हैं, जो उन क्षेत्रों में फायदेमंद हो सकते हैं जहां ध्वनि प्रदूषण एक चिंता का विषय है। चौथा, वे गैसोलीन से चलने वाले ट्रैक्टरो...

किसानों और कृषि के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन:इ कौशलेन्द्र प्रताप सिंह "ग्लोबल फाउण्डेशन सोसायटी"

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कृषि प्रधान देश भारत की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। इसके बावजूद इस क्षेत्र को उपेक्षित रखा गया था, लेकिन नरेन्द्र मोदी के प्रधनमंत्री बनने के बाद देश के कृषि क्षेत्र में एक अलग ही उत्साह का माहौल बना कृषि क्षेत्र में प्रवेश के लिए मोदी सरकार ने विभिन्न येजनाओं कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को लगातार प्रोत्साहित किया। इसके कारण अब पढ़े-लिखे युवा भी कृषि क्षेत्र के प्रति आकर्षित हार हैं भारत का कृषि बजट नै साल में पाँच गुणा बढ़कर 1.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। 2014 में कृषि बजट 25,000 करोड़ रुपये से भी कम था। भारतीय कृषि क्षेत्र आजाद के बाद लंबे समय तक संकट में रहा। देश को खाद्य सुरक्षा के लिए अन्य देशों पर निर्भर होना पड़ा, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में सरकार की नीतियों व किसानों के अथक प्रयसों ने देश को न सिर्फ आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि आज हम कई कृषि उत्पादों का निर्यात कर रहे हैं। लगभग 12 करोड़ किसानों को छह हजार रुपये सालाना सम्मान निधि देकर उन्हें उत्साहित और सम्मानित किया गया है। कृषि उत्पादों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए मोदी सरकार मिशन मोड में काम कर ...

अब एक ही पेड़ पर उगेंगे 12 नस्लों के आम, 100 से ज्यादा किसानों ने शुरू की खेती

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अब एक ही पेड़ पर उगेंगे 12 नस्लों के आम, 100 से ज्यादा किसानों ने शुरू की खेती देश में जल्द ही एक पेड़ पर 12 नस्लों के आम उगेंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इस नई तकनीक को विकसित करने में सफलता हासिल की है। इस सफलता के बाद आने वाले समय में किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी की संभावना है। किसान भी इसे लेकर उत्साहित है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने एक ही पेड़ पर 12 नस्लों के आम की खेती की प्रणाली विकसित की है। आईसीएआर के पूर्वी प्रक्षेत्र रांची स्थित अनुसंधान केंद्र ने यह तकनीक विकसित की है। इन पेड़ों पर एक साथ दशहरी, मालदह, मल्लिका, जर्दालू, तोतापरी, हिमसागर, प्रभाशंकर जैसी प्रजातियों के फल उग रहे हैं। अब इस तकनीक से इलाके के किसानों को अवगत कराया जा रहा है। इसी केंद्र ने एक ही पौधे में बैगन और टमाटर की खेती में भी तकनीक भी विकसित की है। 100 से ज्यादा किसानों ने प्रायोगिक तौर पर इस खेती की शुरूआत भी कर दी है।  ग्राफ्टिंग तकनीक को लेकर किसानों को प्रशिक्षण प्लांडू एक वैज्ञानिक ने बताया कि आम के एक ही पेड़ पर एक दर्जन प्रजातियों के फल उगाने की यह तकनीक ...

नील हरित शैवाल (Blue-Green Algae): जैविक खाद के उत्पादकों के लिए उपज और कमाई बढ़ाने का शानदार विकल्प

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नील हरित शैवाल (Blue-Green Algae): जैविक खाद के उत्पादकों के लिए उपज और कमाई बढ़ाने का शानदार विकल्प नील हरित शैवाल ऐसी जैविक खाद है जो सालों-साल मिट्टी को उपजाऊ बनाये रखती है नील हरित शैवाल से नाइट्रोजन चक्र का स्थिरीकरण (stabilization) होता है। इसके इस्तेमाल से न सिर्फ़ धान की पैदावार बढ़ती है, बल्कि धान के बाद ली जाने वाली रबी की फसलों के लिए भी मिट्टी में बढ़े नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों से फ़ायदा होता है। यदि खेत में लगातार 3 से 4 साल तक इस जैविक खाद का उपयोग होता रहे तो इससे आगामी कई वर्षों तक मिट्टी को शैवाल के उपचारित करने की नौबत नहीं आती, क्योंकि मिट्टी का उपजाऊपन बनी रहती है। नील हरित शैवाल या Blue-Green Algae (Cyanobacteria) एक ख़ास किस्म की काई या जलीय वनस्पति है।  ये एक शानदार जैविक खाद है। किसान इसे आसानी से पैदा कर सकते हैं और कमाई के अतिरिक्त ज़रिये की तरह अपना सकते हैं। नील हरित शैवाल स्वतंत्र रूप से जीने वाले ऐसे जीवाणु हैं जो पेड़-पौधों की तरह प्रकाश संश्लेषण करते हुए वायुमंडलीय नाइट्रोजन को सोखते हैं। इसीलिए नील हरित शैवाल की बाक़ायदा पैदावार...