नील हरित शैवाल (Blue-Green Algae): जैविक खाद के उत्पादकों के लिए उपज और कमाई बढ़ाने का शानदार विकल्प

नील हरित शैवाल (Blue-Green Algae): जैविक खाद के उत्पादकों के लिए उपज और कमाई बढ़ाने का शानदार विकल्प

नील हरित शैवाल ऐसी जैविक खाद है जो सालों-साल मिट्टी को उपजाऊ बनाये रखती है

नील हरित शैवाल से नाइट्रोजन चक्र का स्थिरीकरण (stabilization) होता है। इसके इस्तेमाल से न सिर्फ़ धान की पैदावार बढ़ती है, बल्कि धान के बाद ली जाने वाली रबी की फसलों के लिए भी मिट्टी में बढ़े नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों से फ़ायदा होता है। यदि खेत में लगातार 3 से 4 साल तक इस जैविक खाद का उपयोग होता रहे तो इससे आगामी कई वर्षों तक मिट्टी को शैवाल के उपचारित करने की नौबत नहीं आती, क्योंकि मिट्टी का उपजाऊपन बनी रहती है।

नील हरित शैवाल या Blue-Green Algae (Cyanobacteria) एक ख़ास किस्म की काई या जलीय वनस्पति है।  ये एक शानदार जैविक खाद है। किसान इसे आसानी से पैदा कर सकते हैं और कमाई के अतिरिक्त ज़रिये की तरह अपना सकते हैं। नील हरित शैवाल स्वतंत्र रूप से जीने वाले ऐसे जीवाणु हैं जो पेड़-पौधों की तरह प्रकाश संश्लेषण करते हुए वायुमंडलीय नाइट्रोजन को सोखते हैं। इसीलिए नील हरित शैवाल की बाक़ायदा पैदावार करते हैं और इसका जैविक खाद की तरह इस्तेमाल होता है। इससे अम्लीय और क्षारीय मिट्टी का भी उपचार किया जाता है।

नील हरित शैवाल जलीय पौधों का एक ख़ास समूह है। इसे ‘साइनो बैक्टीरिया’ भी कहते हैं। यह एकल कोशिकीय जीवाणु है और शैवाल के आकृति के होते हैं। इसीलिए इसे नील हरित शैवाल भी कहते हैं। इसके छिड़काव से खेतों की मिट्टी में सबसे प्रमुख पोषक तत्व यानी नाइट्रोजन की भरपाई की जाती है। नील हरित शैवाल से नाइट्रोजन चक्र को मज़बूती मिलती है। इससे ज़मीन में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (stabilization) होता है।
नील हरित शैवाल को मुख्य रूप से धान के खेतों में डालते हैं, क्योंकि धान के खेत में हमेशा पानी भरा रहता है। इससे नील हरित शैवाल को धान के खेतों में लगातार वृद्धि और विकास के लिए अनुकूल माहौल मिल जाता है। इसके उपयोग से धान की फसल को करीब 20 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है। नील हरित शैवाल के इस्तेमाल से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों तथा अन्य पोषक तत्व जैसे ऑक्सीन, जिब्रेलीन, फाइरीडोक्सीन, इंडोल एसिटिक एसिड आदि की मात्रा बढ़ती है।
नील हरित शैवाल के इस्तेमाल से न सिर्फ़ धान की पैदावार बढ़ती है, बल्कि धान के बाद ली जाने वाली रबी की फसलों के लिए भी मिट्टी में बढ़े नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों से फ़ायदा होता है क्योंकि इन सभी पोषक तत्वों से बीजों का अंकुरण और फसल बढ़वार बेहतर होती है। इस तरह नील हरित शैवाल का उपयोग तात्कालिक के अलावा दूरगामी लाभ भी देता है। यदि खेत में लगातार 3 से 4 साल तक इस जैविक खाद का उपयोग होता रहे तो इससे आगामी कई वर्षों तक मिट्टी को शैवाल के उपचारित करने की नौबत नहीं आती, क्योंकि मिट्टी का उपजाऊपन बनी रहती है।

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