कहानी मृदा जनित बीमारियों की
कहानी मृदा जनित बीमारियों की
पेड़, पौधे भी बीमारियों से ग्रस्त होते है । यह बीमारियां उन्हे जड़, तना, पत्ती, फूल, फल, कंद कहीं भी हो सकती है और समय पर नियंत्रण नहीं होने की स्थिति में पौधे खत्म हो जाते है, उत्पादन कम मिलता है, गुणवत्ता खराब हो सकती है कुल मिलाकर नुकसान ही होता है।
इस लेख में केवल मृदा जनित बीमारियों से थोड़ा परिचय कराने की कोशिश है। मृदा जनित से मतलब है मिट्टी की वजह से होने वाली बीमारियां। जैसा की हम सभी जानते है मिट्टी में सेकडो प्रकार के सूक्ष्म जीव रहते है वो फफूंद, बैक्टीरिया, वायरस, नेमाटोड़ आदि हो सकते है। इनके कुछ प्रकार पौधो के लिए लाभकारी होते है वहीं कुछ नुकसान दायक होते है। यही नुकसान देने वाले सूक्ष्म जीव पौधो की जड़ों को खराब करते है या उगने वाले अंकुर को संक्रमित करते है या छोटे पौधे के तनों को गला देते है।
अब अंकुर संक्रमित है तो अंकुरण कम दिखता है। पौध संख्या कम होने पर दोबारा बुवाई की जरूरत पड़ जाती है। छोटे पौधो में तनागलन होने से पौध संख्या कम हो जाती है। ये शुरुआत में ही दिख जाता है लेकिन फसल की बाद की अवस्था में दिखने वाली बीमारी है विल्ट, जड़ सड़न, जमीन के पास से तना सड़न, कंद सड़न आदि।
जड़ सड़न होने से सबसे पहले लक्षण पत्तियों पर दिखना शुरू होते है। भोजन और पानी का आवागमन बंद होने से पत्तियां पीली दिखने लगेगी, गर्मियों में दिन में पत्तियां मुरझाई सी दिखती है, बढ़वार बहुत कम होगी या रुक जायेगी। बीमारी बढ़ने के साथ साथ पौधा सूखता चला जाता है। चना, तुवर, जीरे की विल्ट, मक्का में पीएफएसआर, लहसुन, प्याज में कंद सड़न, जड़ गांठ सूत्रकृमि, कपास की विल्ट, आलू में स्कैब (जीवाणु द्वारा), ईसबगोल में जड़ सड़न आदि।
इसलिए पत्तियां पीली पड़े, पौधा सुखा सा दिखे तो जड़ का निरीक्षण जरूर करना चाहिए। ताकि सही बीमारी को सुनिश्चित करते हुए उपचार किया जा सके।
फ्यूजेरियम और वेर्टीसिलियम विल्ट के लिए जिम्मेदार मुख्य फफूंद है वहीं, राइजोक्तोनिया, पीथियम जैसी फफूंद पौध गलन के लिए जिम्मेदार है। स्क्लेरोशियाम जड़ और तने के संधि स्थल को प्रभावित करती है। सूत्रकृमी जड़ में गांठ बनाते है और उनके बनाए रास्तों से फफूंद या अन्य सूक्ष्म जीव जड़ में प्रवेश कर उसे प्रभावित करते है। वहीं बैक्टीरियल बीमारियां सॉफ्ट रॉट का कारण बनती है।
नियंत्रण : मृदा जनित बीमारियों के लिए कुछ सामान्य उपाय अपनाकर अच्छी फसल ली जा सकती है।
1. ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई
2. पर्याप्त मात्रा में जैविक खादों का प्रयोग
3. मिट्टी का सौर उपचार
4. फसल चक्र
5.प्रति रोधी किस्मों का प्रयोग
6. जमीन में अच्छी जल निकास व्यवस्था
7. खेत और मेड़ों की स्वच्छता
8. जैविक नियंत्रण के उपाय जैसे ट्राइकोडर्मा का प्रयोग
9. बीज उपचार
10. मृदा उपचार
11. मिट्टी का सौर उपचार
विषय बहुत विस्तृत है इसलिए केवल आधारभूत सामान्य जानकारी है।
✍️ Er. K.P.SINGH
globalkrishi.com
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